राजनीति विज्ञान
लोक अदालत किसे कहते है इसके कार्य
लोक अदालत
लोक अदालत का अर्थ है जनता का न्यायालय शीघ्र और सस्ता न्याय सुलभ कराना एक अच्छी न्याय व्यवस्था का सर्वप्रथम गुण है परंतु अनेक कारणों से भारतीय न्याय व्यवस्था अत्यंत शिथिल और सस्ता न्याय सुलभ कराने में सक्षम रही है छोटे-मोटे मुकदमों का निर्णय होने में ही वर्षों लग जाते हैं इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि कार्य की अधिकता के कारण भारतीय न्यायालय में आज भी लाखों मुकदमे ऐसे पड़े हैं जिनका निर्णय होना तो दूर उनकी सुनवाई भी प्रारंभ नहीं हो सकी है।
इसके परिणाम स्वरूप निर्धन व्यक्ति अन्याय और अत्याचार सहन करने के लिए बाध्य है। वह अपनी निर्धनता और समय अभाव के कारण न्यायालय के द्वार तक नहीं पहुंच पाता इस प्रकार शीघ्र और सस्ता न्याय ना मिलना न्याय प्रदान ना करने का ही प्रतीक है। अतः भारतीय न्याय व्यवस्था पर विलंब से न्याय मिलना न्याय ना मिलना ही है।
लोक अदालतें
लोक अदालतों की धारणा न्यायमूर्ति श्री पीएन भगवती के नाम से जुड़ी हुई है । 6 अक्टूबर 1985 को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पीएन भगवती की अध्यक्षता में प्रथम लोक अदालत का आयोजन नई दिल्ली में किया गया । उसी 1 दिन में 116 विवादों का आपसी समझौतों से समाधान तथा निर्णय किया गया जब श्री भगवती गुजरात राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे।
तो उन्होंने विलंबकारी और महंगी न्यायिक प्रक्रिया की ओर ध्यान दिया उन्होंने न्याय व्यवस्था और प्रक्रिया की व्यवहारिकता और वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक समझा कि सामान्य न्यायालय में लंबे समय से निलंबित पढ़े हुए मुकदमों का सामान्य न्यायालयों से हटाकर उनका निर्णय अलग प्रकार की अदालतों द्वारा कराया जाए।
अतः श्री भगवती ने समाज के निर्धन निर्बल दलित अशिक्षित एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को निशुल्क सहायता देने की एक योजना बनाई और उसे क्रियान्वित किया साथ ही उन्होंने ही वहां लोक अदालतों के आयोजन की प्रणाली का भी श्रीगणेश किया गुजरात में लोक अदालतों का आयोजन अत्यंत सफल रहा।
इस प्रकार गुजरात भारतीय संघ का वह प्रथम राज्य है जहां कानूनी सहायता की योजना के एक भाग के रूप में सर्वप्रथम लोक अदालतों का आयोजन किया गया इसके पश्चात गुजरात राज्य को आदर्श मानकर उसका अनुकरण करते हुए भारतीय संघ के विभिन्न राज्यों एवं संघ शक्ति प्रदेशों के विभिन्न भागों में शिविरों के रूप में लोक अदालतों के आयोजन का क्रम प्रारंभ हो गया।
मध्यप्रदेश में प्रथम लोक अदालत का आयोजन 13 अप्रैल 1986 को बिलासपुर में किया गया। इसके पश्चात दुर्ग, झाबुआ, जबलपुर, बालाघाट, सागर शहडोल और कटनी आदि स्थानों पर अब तक लोक अदालतों के अनेक आयोजन होते रहे हैं। जिनके माध्यम से समाज के निर्धन एवं निर्बल वर्ग के लोगों को आदिवासियों को शीघ्र एवं सस्ता न्याय मिलता है ।
इस प्रकार समाज निर्धन निर्बल दलित अशिक्षित एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को निशुल्क कानूनी सहायता देकर शीघ्र एवं संस्था नया सुलभ कराने के लिए न्यायमूर्ति श्री पीएन भगवती के विचारों के आधार पर लोक अदालतों के रूप में एक दूसरा मार्ग निकाला गया है। इसके परिणाम स्वरूप समाज के निर्धन निर्मल दलित अशिक्षित एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए कानूनी सहायता और शीघ्र एवं सस्ते न्याय की बात जो अब तक उनकी पहुंच से बाहर बनी हुई थी आसान हो गई है।
लोक अदालतों का अभिप्राय
लोक अदालत का अर्थ है एक जन न्यायालय या जनता की अदालत है यह ना तो न्यायपालिका का अंग है और ना ही उसके समांतर लोक अदालत की स्थापना के दो महत्वपूर्ण कारण है शीघ्र न्याय अल्प न्याय अदालत द्वारा कुछ विशेष प्रकार के मुकदमों को बड़े ही सरल तरीके से आपसी सुलह या समझौते के आधार पर मिटाने का प्रयास किया जाता है लोक अदालतें कानूनी दांव पेंच ओ के आधार पर निर्णय ना देकर साधारण बोलचाल की भाषा में आपसी समझौते को ही सबसे बड़े न्याय बताते हुए समझौते कराती है ।
इन अदालतों के माध्यम से दोनों पक्षों पर सामाजिक नैतिक दबाव पड़ता है और वे आपस में समझौता करने में ही अपना ही समझते हैं इन अदालतों के माध्यम से हुए समझौतों को कानूनी मान्यता प्राप्त होता है।
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