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विज्ञान क्लास 10

जंतु पोषण किसे कहते हैं, पोषण के प्रकार

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jantu poshan

जंतु पोषण

प्राणियों को अपने सजीव दशा बनाए रखने के लिए बाहर से भोजन या कार्बनिक पदार्थ ग्रहण करना आवश्यक होता है। क्योंकि शरीर की भौतिक विधि एवं मरम्मत के लिए शरीर की प्रत्येक कोशिका में कार्बोहाइड्रेट वसा एवं प्रोटीन की आवश्यकता निरंतर बना रहता है ।जैविक क्रियाओं में लगने वाली ऊर्जा का उत्पादन के लिए पोषण पदार्थों का रसायनिक घटन आवश्यक है ऐसे विशिष्ट पदार्थों को जो जल अपघटन के पश्चात ऊर्जा देते हैं तथा शरीर की वृद्धि विकास एवं उत्तक के मरम्मत में सहायक होते हैं। उन्हें भोजन कहते हैं अथवा पोषण उन जैविक क्रियाओं का समायोजन है जिनके द्वारा प्राणी अपनी क्रियाशीलता को बनाए रखने अंकों की वृद्धि एवं पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक पोषण पदार्थों को ग्रहण कर उनका उपयोग करता है।

परिभाषा

जीव धारियों की वह अनिवार्य जैविक क्रिया जिसमें जीव बाहरी वातावरण से भोजन ग्रहण करते हैं। तथा भोज्य पदार्थों से ऊर्जा प्राप्त कर शरीर की वृद्धि करते हैं पोषण कहलाते हैं।

पोषण के प्रकार

सभी जीव धारियों में पोषण मुख्यता दो प्रकार का होता है।

स्वपोषी पोषण

ऐसे जीवधारी जो कार्बोहाइड्रेट प्रोटीन वसा आदि के लिए किसी अन्य स्रोत पर निर्भर नहीं रहते अथवा सरल अकार्बनिक पदार्थों जल व क्लोरोफिल आदि से सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा स्वयं अपना भोजन निर्माण कर लेते हैं ।इन्हें स्वपोषी कहते हैं । उदाहरण हरे पेड़ पौधे कुछ रसायन संश्लेषित जीवाणु तथा कुछ एक कोशिकीय जीव होते हैं।

परपोषी पोषण

वे जीव जो अपना भोजन स्वयं निर्माण नहीं कर सकते क्योंकि इनमें क्लोरोफिल का अभाव होता है इसलिए यह जीव अपने भोजन के लिए अन्य जीवो पर आश्रित होने के कारण पर पोषण या विषम पोषण टीवी कहलाते हैं ।उदाहरण सभी जंतु तथा कवक और कुछ जीवाणु तथा कुछ एक कोशिकीय जीव परपोषी पोषण कई प्रकार के होते हैं।

  1. प्राणीसम पोषण
  2. परजीवी पोषण
  3. मृतोपजीवी पोषण
  4. सहजीवी पोषण
  5. कीट भक्षी पोषण

प्राणीसम पोषण

वेज यू जो भोजन को ठोस रूप में ग्रहण करते हैं तथा इस पोषण में जंतु भोज्य पदार्थों को निकलकर अंत ग्रहण करते हैं ।इसके बाद भोजन का शरीर के अंदर पाचन अवशोषण तथा स्वांगीकरण होता है भोज्य पदार्थों की प्रकृति के आधार पर ऐसे पोषण करने वाले जंतुओं को मुख्य समूह में बांटा गया है।

शाकाहारी  – उदाहरण – भेड़, बकरी, हिरण हाथी।

मांसाहारी – हाइड्रा, शेर, बाघ, चीता इत्यादि।

सर्वाहारी – कुत्ता, मनुष्य, तिलचट्टा।

परजीवी पोषण

वे सभी जीव जो अपने भोजन के लिए वन्यजीवों के शरीर के बाहर या भीतर रहते हैं। और उन्हीं से भोजन प्राप्त करते हैं परजीवी कहलाते हैं पोषण की इस विधि को परजीवी पोषण कहते हैं। परजीवी किस जीव के शरीर में अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं उसे पोषण कहते हैं ।बाहरी परजीवी पोषण के बाहर ऊपरी सतह पर रहते हैं। उदाहरण-  जोक , मच्छर,  खटमल इत्यादि इसके विपरीत अंतः परजीवी पोषण के अंदर विद्यमान होते हैं उदाहरण प्लाज्मोडियम एंड अमीबा फीता कृमि आदि।

मृतजीवी पोषण

इस पोषण में जो सड़े गले निर्जीव पदार्थों से शराबी तरल कार्बनिक पदार्थों को पोषण पदार्थ के रूप में ग्रहण करते हैं। इसके अंतर्गत जीव विशिष्ट पाचक रस निर्मित करते हैं ।जो विघटन में सहायक होते हैं उदाहरण राइजोपस मशरूम जीवाणु इत्यादि।

सहजीवी पोषण

सहजीवी पोषण पोषण की वह विशिष्ट विधि है जब 2 पौधे आपस में संयुक्त रूप से साथ साथ रहकर जीवन यापन करते हैं तब ऐसे पादप को सहजीवी पादप कहते हैं तथा इनके पोषण प्राप्त करने की विधि को सहजीवी पोषण कहते हैं। जबकि इनकी यह संबंध सहजीविता कहलाता है।

कीट भक्षी पोषण

इस पोषण के अंतर्गत जीव अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा निर्माण कर लेता है ।क्योंकि यह पौधे दल दली स्थान में उगने के कारण नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए छोटे-छोटे कीटों को यह विशिष्ट वीडियो द्वारा रूपांतरण द्वारा ग्रहण करते हैं उदाहरण कलश पादप ब्लाडरवर्ट आदि।

प्राणी संपोषित पोषण प्रक्रिया के प्रमुख पद इन प्राणियों में पोषण प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया मानी जाती है जोकि कई चरणों में पूरी होती है।

  1. अंतर ग्रहण
  2. पाचन
  3. अवशोषण
  4. स्वांगीकरण
  5. बहिष्करण

अंतर ग्रहण – अंतर ग्रहण वह क्रया है जिसके द्वारा भोज्य पदार्थों को जीव शरीर के अंदर ग्रहण करते हैं इस क्रिया में मुंह दांत जीभ हाथ इत्यादि सहायता करते हैं।

पाचन – जीव भोज्य पदार्थों को जिस रूप में ग्रहण करते हैं उसी रूप से उपयोग नहीं कर सकते हैं क्योंकि यह बहुत ही जटिल होते हैं। इन जटिल खाद्य पदार्थों को सरल कार्बनिक पदार्थों में विभिन्न एंजाइमों की सहायता से आप घटित कर सरल तथा उपयोगी पदार्थों में बदलना ही पाचन कहलाता है। यह प्रक्रिया आहार नाल में पूरी होती है इस कार्य में पाचक ग्रंथियां सहायता करती है।

अवशोषण -पचे हुए भोजन पदार्थों को आंत्र द्वारा अवशोषित करने की प्रक्रिया अवशोषित कहलाती है इसमें छोटी आत के द्वारा सरल कार्बनिक पदार्थों को अवशोषित कर संवहन द्रवों में मिला देती है।

स्वांगीकरण- अवशोषित भोज्य पदार्थ विभिन्न कोशिकाओं द्वारा अपने लिए नए उपयोगी योमिक जैसे जीव द्रव्य के प्रोटीन वसा लिपिड आदि का संश्लेषण करती है जिसे नया जीव द्रव्य बनता है यह क्रिया स्वांगीकरण कहलाता है।

बहिष्करण – अपचित भोजन जो हमारे शरीर के लिए उपयोगी नहीं होते उन्हें शरीर से बाहर निकालने की क्रिया ही बहिष्करण कहलाती है इस क्रिया में बड़ी आंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

 

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