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मोर मुकुट मकराकृत कुंडल का अर्थ | बसो मेरे नैनन में नंदलाल पद की व्याख्या
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल का अर्थ
बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल।
मोहनि मूरति सांवरी सुरति, नैना बने बिसाल।
अधर सुधा-रस मुरली राजति, उर बैजंती माल।
छुद्र घंटिका कटि तट शोभित, नुपूर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुख दाई, भक्त बछल गोपाल ।
भावार्थ – मीरा बाई कहती है – हे प्रभु श्री कृष्ण आप हमेशा, मेरे नयन में स्थान ग्रहण करो । आप का ये मोह लेने वाला रूप सदैव मेरी आँखों में निवास करें । हे प्रभु श्री आपके माथे पर जो मोर का मुकुट और कानों में मकरा कृत कुंडल आपने धारण किया हुआ है । और आपके माथे पर लाल रंग का तिलक लगा हुआ है । तो आपका ये रूप बड़ा सुंदर दिखाई दे रहा है।
हे प्रभु आपका रूप अत्यंत मोहक है । आपकी सांवली सूरत(चेहरा) पर बड़े-बड़े नेत्र आपके सुंदरता को और बढ़ा रहे है । हे प्रभु श्री कृष्ण आपके होंठों पर अमृत रस बरसाने वाली मुरली सुशोभित है । वक्ष पर आपके बैजंती माला अत्यंत सुंदर प्रतीत हो रहा है ।
प्रभु की कमर में छोटी सी घंटी और पैरों में सरस, मधुर ध्वनि उत्पन्न करने वाली घुंघरू सुशोभित है । मीरा कहती है कि मेरे प्रभु श्री कृष्ण संतों को सुख देने वाले और अपने भक्तों से प्रेम करने वाले है.मोर मुकुट मकराकृत कुंडल का अर्थ
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